अष्टांग योग क्या है, अष्टांग योग के विभिन्न अंगों का वर्णन, योग के आठ अंग

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अष्टांग योग क्या है। अष्टांग योग के आठ अंग।

योग का अर्थ :-

                     महर्षि पतंजलि योग सूत्र के 8 अंगों का उल्लेख किया है उन्हें ही अष्टांग योग कहा जाता है। अष्टांग योग का अर्थ है योग के आठ अंग वास्तव में योग के आठ पथ योग की आठ अवस्थाएं होती हैं। जिनका पालन करते हुए व्यक्ति की आत्मा या जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है, अष्टांग योग का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का नाश होता है जिससे ज्ञान का प्रकाश चमकता है और विवेक की प्राप्ति होती है।


अष्टांग योग के अंग :-     महर्षि पतंजलि ने इनकी आठ अवस्थाएं बताएं हैं जैसे:-

  • यम:- यम योग की व्यवस्था है जिसमें समाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों और मन को आत्म केंद्रित किया जाता है यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति आंसर, सच्चाई, चोरी ना करना, पवित्र तथा त्याग करना सीखता है।

  • नियम:- से अभिप्राय व्यक्ति द्वारा समाज स्वीकृत नियमों के अनुसार ही आचरण करना है, जो व्यक्ति नियमों के विरुद्ध आचरण करता है, समाज उसे सम्मान नहीं देता। इसके विपरीत जो व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार आचरण करता है, समाज उस को सम्मान देता है  नियम के 5 भाग होते हैं 
          शुद्धि, संतोष, तप, स्ध्याय और ईश्वर प्राणीधान इन सभी पर अमल करने से व्यक्ति परमात्मा को पा लेता है और आचार्य रूप से शक्तिशाली बनता है ।

  • आसन :-  जिस अवस्था में शरीर ठीक से बैठ सके वह आसन है । आसन का अर्थ बैठना। योग की सिद्धि के लिए उचित आसन में बैठना बहुत आवश्यक है महर्षि पतंजलि के अनुसार  "स्थिर सुख आसनmm" जिस रीति से हम स्थिरतापूर्वक, बिना हिले डुले और सुख के साथ बैठ सके,  वहआसन है | ठीक मुद्रा में रहने से मन शांत रहता है

  • प्राणायाम:- दो शब्दों के मेल से बना है प्राण और आयाम। प्राण का अर्थ है  सांस लेना और आयाम का अर्थ है नियंत्रण । प्राणायाम उस अवस्था को कहते हैं जिसमें हम अपने सांस पर नियंत्रण पा लेते हैं इसके तीन प्रकार होते हैं :-


    https://www.hindimei.in/2020/12/ashtaang-yog-kya-hai.html



  • पूरक  सांस को अंदर लेना।
  • रेचक  सांस को बाहर छोड़ना।
  • कुंभक सांस को रोकना।
  • प्रत्याहार अष्टांग योग प्रत्याहार से अभिप्राय ज्ञानेंद्रियों के मन को अपने नियंत्रण में रखने से है साधारण शब्दों में प्रत्याहार का अर्थ मन व इंद्रियों को उनकी संबंधित क्रियाओं से हटकर परमात्मा की ओर लाना है।

  • धारणा अपने मन के निश्चल भाव को धारणा कहते हैं ।अष्टांग योग में धारणा का बहुत महत्व है धारणा का अर्थ मन को किसी विषय में लगाना है इस प्रकार ध्यान लगाने से व्यक्ति में एक महान शक्ति उत्पन्न हो जाती है साथ ही उसके मन की इच्छा भी पूरी हो जाती हैं।

  • ध्यान जब मन पूरी तरह से नियंत्रण में हो जाता है तो ध्यान लगना आरंभ हो जाता है ।अतः मस्तिष्क की पूर्ण एकाग्रता ही ध्यान खिलाती है।

  • समाधि योग की सर्वोत्तम अवस्था है। यह यह सांसारिक दुख सुख से ऊपर की अवस्था है समाधि योग की व्यवस्था है जिसमें साधक को स्वयं का भाव नहीं रहता वह पूर्ण रुप से अचेत अवस्था में होता है इस अवस्था में वह उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है जो आत्मा में परमात्मा का मिलन होता है

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